Tuesday, January 12, 2010

असंवेदनहीनता की पराकाष्ठा

तमिलनाडू के तिरुनेलवेली क्षेत्र में अक पुलिस कर्मी पर कुछ बेख़ौफ़ बदमाशो ने धार धार हथियार से हमला कर उनका एक पैर ही काट दिया अक स्वस्थ समाज के निर्माण में पुलिस को इनसे दो चार करना ही पड़ता है जो वर्तामन समय में आम बात हो चुकी है बहरहाल तमिलनाडू के इतिहास में पुलिस पर इतना बड़ा हमला २०साल बाद हुआ आम जनता और पुलिस पर इतना बड़ा हमला बेहद शर्मसार करने वाला होता है लेके इसके बाद जो दुसरस हादसा हुआ वह समपर्ण देश को चकित और स्तब्ध करने वाला था दरअसल जिस सड़क पर हादसा हुआ वाही से राज्य के दो दिग्गज मंत्री अपने ७० गाडियों के लाव लस्कर के साथगुजर रहे थे ,काफिले के सुरक्षा की शोभा एक कमिशनर साहब भी बढ़ा रहे थे जनाब लोग उस घटना स्थल पर उतरे तो जरुर लेकिन मदद के बजे तमाशबीन बने रहे हमले के बाद पुलिस कर्मी तो अपने को मृतक समझ ही लिया था , शायद इनको देखकर उसके अन्दर जिंदगी की कुछ आस जरुर जगी होगी परन्तु इनकी शानदार मूक दर्शकी ने उसकी मौत की पुष्टि जरुर कर दी यदि यह आम झातना आम आदमी के मध्य घटित होती और वह मदद की साहस नहीं जुटा पाता, यह तो समझ में आता है जबकि यहाँ पर सेवक ही असहाय नजर आये ऐसी घटनाओ में आम आदमी आम आदमी का अधिकार आने से बचने का कारन देश की लचर कानून व्यवस्था है जिसमे मददगार को ही शक के नजर से देखा जाता है, जो जाँच का शायद बेहद निन्म स्तर होता है वैसे भी हमारे भ्रष्ट समाज में आम आदमी को बोलने का अधिकार मिलता ही कहा है वह एक उच्च स्तर का एक श्रोता मात्र होता है लेकिन इसको अटूट सत्य मानकर हम हाथ पर हाथ रख बैठ नहीं सकते परिवर्तन ही प्रकृति का नियम होता है और इस परिवर्तन की शुरुआत जनता के प्रतिनिधियों को ही करनी पड़ेगी पर ऐसी नजीर जी कल्पना करना अभी बेईमानी होगी कम से कम यह घटना तो यही तस्वीर उजागर करती है उस पुलिस कर्मी के दर्द की क्षमता उन नेताओ को जरा भी महसूस नहीं हुई पुरे ३० मिनट वह सड़क पर तड़पता और चिल्लता रहा , जबकि उन कथित सेवको के ऊपर रत्ती भर असर नहीं हुआ उन्होंने पुलिस पर प्रत्यक्ष हमला तो नहीं किया ,लेकिन इंसानियत का का फिर्ज़ अदा न करके उसको मौत को गले लगाने पर मजबूर जरुर किया देश के यह राजनेता जब एक पुलिस कर्मी जो इनकी सुरक्षा में सदैव तत्पर होता है ,उसके मुसीबत में उसे अकेला छोड़ सकते है तो आम जनता की कितनी राहत देगे लाफ्फागी और भाषणबाजी में माहिर यह लोग तो हँसे भिन्न दिखने में ही अपनी शान समझते है ऐसे लोगो के प्रति आम आदमी का कैसा व्यहार होना चाहिए यह खुद उसी को तय करना होगा

Monday, January 11, 2010

लाल की मौत पर अधिकारों की हत्या

देश के दुसरे प्रधानमंत्री स्व० श्री लाल बहादुर शाश्त्री की संवेदनशील मौत का सच आज ४४ वर्षो बाद भी आम जनता के सामने नहीं आ पाया है १९६५ के भारत -पाकिस्तान युद्ध के बाद जनवरी १९६६ में लाल बहादुर शाश्त्री और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ताशकंद में शांति समझौता के लिए उपस्थित हुए इस समझाते में शाश्त्री जी ने हाजीपीर को पाक को दे दिया जिस कारण वे अत्यधिक मानसिक उहापोह की स्थिति में थे जिस पर आज भी संसय बरकरार है रात्रि के भोजन के बाद उनको ताशकंद के एक होटल में रुकना था ,जबकि उनको शहर से दूर एक गेस्ट हॉउस में ठहराया गया उस जगह का निरिक्षण एक भारतीय आला अधिकारी डीसी दत्त ने किया था मध्य रात्रि को शाश्त्री जी की तबियत अचानक ख़राब हो गयी, परन्तु व्यवस्था ऐसी थी की वहा पर सुविधा नगण्य थी भारत के प्रधान मंत्री के साथ इतनी घथिया बदइन्तजामी थी कि वह उनकी असामयिक मौत का कारण बन गयी उसी समय से मौत को छिपाने की पूरी कोशिश शुरू हो गयी मृत्यु का कारण दिल का दौरा बताया गया जबकि शास्त्री जी का पूरा शारीर नीला पड़ गया था, इसके बावजूद पोस्टमार्टम नहीं किया गया कार्यवाही के नाम पर उनका खाना पकाने वाले रशियन कुक से पूछताछ कर उसे ५ घंटा बाद छोड़ दिया गया मृत्यु के कारणों की पुष्टि का ९ डाक्टरों वाला प्रमाण पत्र आज भी भारत सरकार के पास नहीं है इस सच को जानने का प्रयास जनता दल की सरकार ने जरुर किया था, कोर्ट में याचिका दायर की गयी सुनवाई की तिथि निर्धारित की गयी, जिसमे शास्त्री जी के पर्सनल डाक्टर आर.ऍम चुक तथा रामनाथ को कोर्ट में गवाही के लिए पेश होने के लिए कहा गया, जबकि कोर्ट आने से पहले ही डाक्टर चुक की एक कार दुर्घटना में पुरे परिवार के साथ मृत्यु हो गयी, रामनाथ को एक सरकारी बस ने कुचल दिया जिसमे उनके दोनों पैर कट गए, साथ ही उनका मानसिक संतुलन बिगड़ गया अब सवाल यह उठता है की आखिर गवाही की ठीक एक दिन पहले ही दोनों गवाहों की मौत कैसे हो गयी ?इसका अंदाजा तो शायद एक साधारण आदमी भी लगा सकता है शास्त्री जी के निवर्तमान प्रेस सलाहकार कुलदीप नैय्यर भी इसको षड़यंत्र मानते है ,जो उस समय ताशकंद में मौजूद रहे कुलदीप को ताशकंद में भारतीय राजदूत ने दो बार फोन करके शास्त्री जी की स्वाभाविक मौत स्वीकार करने को कहा था सब कुछ छिपाने की योजना और साजिश व्यापक स्तर पर चल रही थी सूचना के अधिकार के तहत जब अनुज धर ने याचिका दायर की तो प्रधान मंत्री कार्यालय ने सूचना देने से मना कर दिया दुसरे देश से रिश्ता बिगड़ जाने का हवाला दिया गया भारत का वह लाल जिसने देश की वाह्य तथा आतंरिक रक्षा करने वाले जवानो और किसानो को एक सूत्र में पिरोने का प्रयास किया, उसके साथ अपनी सरकारे ऐसा बर्ताव करेगी शायद किसी ने सोचा नहीं होगा विदेश से रिश्ते बिगड़ने का हवाला देने वालो की इससे बड़ी विफलता क्या हो सकती है कि वे इतने संवेदनशील और गंभीर घटनाक्रम पर बुरी तरह असफल सिद्ध हुए विदेश की चिंता जताने वालो को आज उनकी जरा भी चिंता नहीं है जिन्होंने उनको इस काबिल बनाया है

Thursday, January 7, 2010

मीडिया की सच्चाई या गिरता स्तर

गुरुवार ७ दिसबर की शाम को आंध्र के एक लोकल चैनल ने वाई.एस.राजशेखर रेड्डी की मौत की गलत खबर दिखाई , जिससे लोग सड़क पर उतारकर जमकर हंगामा करने लगे सर्वविदित है कि २ सितम्बर २००९ को एक हेलीकाप्टर दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गयी थी राजशेखर का अपनी जनता से कितना आत्मीय लगाव था उसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दुर्घटना के बाद करीब १०० लोगो ने अपने नेता को खोने के गम में आत्महत्या कर ली इस बेदह संवेदनशील घटना को एक तेलगु चैनल द्वारा ३ सितम्बर को रुसी अख़बार कि एक वेबसाइट में लिखी खबर कि राजशेखर कि हत्या एक सोची समझी साजिश थी और इसके पीछे एक प्रतिष्ठित उधोग घराने का हाथ है उस खबर को चैनल ने खबरों कि अंधी दौड़ में आगे आगे निकलने के लिए विवेकहीन होकर चला दिया जल्दीबाजी दिखने का परिणाम आन्ध्र में उबाल ला दिया है लोकत्रंत्र का चौथा स्तम्भ कहने वाला मीडिया का आज स्तर कितना गिरता जा रहा है, यह इसका एक नमूना मात्र है समाज को आइना दिखाने वालो को अब खुद आईने कि जरुरत पड़ गयी है यहाँ खबर चलाना से पहले एंगल तय किया जाता है , पता नहीं उस चैनल ने किस एंगल से राजशेखर कि मौत को ही झूठा साबित कर दिया ऐसे में तो बस यही समझ आता है कि मीडिया तेरे रूप अनेक .................

ऑस्ट्रेलिया की लापरवाही या लीपापोती

ऑस्ट्रेलिया में भारतीय छात्रो पर हमले का सिलसिला लगातार बढता ही जा रहा है परन्तु अब तक ऑस्ट्रेलिया सरकार की तरफ कोई सकारात्मक पहल देखने में नहीं आया हैपंजाब के छात्र नितिन गर्ग के बाद विदेश मंत्री एस . ऍम. कृष्णा की कड़ी आप्पति के बाद ऑस्ट्रेलिया भारत को संयम बरतने की नसीहत दे रहा हैसाथ ही उसको अपने अंदर झाकने की सलाह भी दे रहा है कि भारत्ब के बड़े महानगरो में भी विदेशी लोगो कि हत्या हो रही है इधर दिल्ली ऑस्ट्रलियाई उच्चायुक्त पीटर वर्गीश ने कहा कि अधिकतर घटनाये शहरी अपराध के मामले है हमले को शुन्य करने पर वह अपनी असमर्थता भी जताते है वर्तमान समय में ऑस्ट्रेलिया में भारत के लगभग ९० हजार भारतीय है ,छात्रो का बड़ा समूह वहा शिक्षा ग्रहण कर रहा है जिससे वहा कि सरकार को काफी मात्र में आर्थिक लाभ होता हैइसका अंदाजा शायद ऑस्ट्रेलिया सरकार को नहीं है यदि वहा भारतीयों पर हो रहे हमले कि मूल जड़ को देझा जाये तो वह नस्लीय भेदभाव है जिसको वे मानने को तैयार नहीं हैं ऐसे में सवाल यह य्थाता है कि बिना आधार के किस बुनियाद पर पुलिस या सरकार जाँच का झूटी अस्वासन दे रही है अभी तक कोई गिफ्तारी नहीं हुई है औए हमले निरंतर जारी है विद्यार्थियों के जीवन के मह्त्व्व को दोनों देशो कि सरकारों अब समझाना ही होगा ऑस्ट्रेलिया सरकार से ऐसे समय में उम्मीद करना तो बेईमानी ही दीखता है भारतीय सन्दर्भ में बात करे तो अब सरकार को समझाना होगा कि आखिर क्यों छात्र देश छोड़कर बाहर जाकर शिक्षा ग्रहण कर रहे हैविदेशी शिक्षा का ऐसा परिणाम देखते हुए भारत सरकार को अपनी घरेलु शिक्षा निति कि सूक्ष्मता कि पड़ताल करने का समय आ गया है विदेश मंत्री एस. ऍम. कृष्णा को सिर्फ खीजने से कुछ नहीं होगाजैसा कि वो अपने वक्तब्य में कहते है कि छोटे -छोटे कोर्स के लिए छात्र विदेश जाते ही क्यों है?इसका सार्थक उत्तर यदि सरकार जानना चाहती है तो मात्र उसको अपने अन्दर झाकने कि जरुरत है तस्वीर अपने आप स्पस्ट हो जाएगी जिस देश में प्राथमिक शिक्षा देने के के लिए भोजन जो सहारा बनाया जाता है वहा उच्च शिक्षा का स्तर कितना प्रभ्वी है इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है

Wednesday, January 6, 2010

बात तो अब निकल ही चुकी है

सपा के पूर्व महासचिव (पूर्व इसलिए की अब जनाब ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है , जिसको मुलायम सिंह स्वीकार कर लेगे ) पार्टी में आपसी खीचा तान तो सालो से चली आ रही है , जबकि ६ जनवरी को यह आम जनता के सामने आ ही गयी जनाब अमर सिंह लाख अपनी बिगड़ते स्वास्थ को इसका कारण बताये जबकि सच्चाई तो यह है, कि अमर की उपयोगिता पर परिवार भारी पड़ गया विधान सभा तथा लोक सभा के उप चुनाव में धरती के बल गिरने और उसके पहले ही पार्टी की जड़ से जुड़े दिग्गज नेताओ का दूर होने पर एक सार्थक बदलाव की उम्मीद तो जरुर थी , लेकिन ऐसा नहीं की बदलाव करने वाले को ही बदल दिया जाये मुलायम के भाई राम गोपाल को शायद अमर सिंह की प्रसिद्धि पाचन नहीं हो रही थी उधर बेचारे अमर करे तो क्या करे स्वाभाव से तो वह शुद्ध व्यापारी है और जिद से राजनेता और व्यापारी का उद्देश्य तो सिर्फ लाभ कमाना होता है , तो शायद उसी लाभ के लिए वह सिर्फ पड़ छोड़ दिए भले ही वह लाभ स्वास्थ-लाभ है अमर जी अपने इस्तीफे के बाद पत्रकारों को बताया कि वे अब सिर्फ एक कार्यकर्ता है तथा आज से जैसा राम गोपाल जी आदेश करेगे वह उनके आदेशो का पालन करेगे अमर और राम के दिल में एक दुसरे के प्रति नफरत कि कितनी मात्राहै , यह तो उनका दिल ही जाने .पर उनके शब्दों का भावार्थ तो प्रेम का परिवर्तित रूप ही दीखता है जो कम हो तो घातक और ज्यादा हो तो ...........................आप समझ सकते है ............

आयोग बना सियासत का सहयोग

बचपन में एक कहावत पढ़ी थी जिसमे कछुआ और खरगोश की दौड़ का जिक्र था कछुआ अपनी क्षमता को पहचानते हुए भी खरगोश के साथ दौड़ाने पर राजी हो जाता है अंततः जीत पर कछुआ अपना अधिकार भी जमा लेता है इस कहानी शिक्षा यही मिलती है की अपने पर विश्वास हो तो अपनी उपयोगिता सिद्ध की जा सकती है ६ दिसम्बर १९९२ को बाबरी बिध्वंस पर लिब्राहन योग ने अपनी रिपोर्ट में कछुआ चाल तो है साथ में विश्वास नहीं है आयोग अपनी रिपोर्ट पेश कर चुका है जैसा उसे एक दिन करना ही था पर दुर्भाग्य यह की इसमे कुल १७ साल लग गए , साथ ही करोडो रूपये का खर्चा भी हुआ इस दौरान ४८ बार आयोग का सेवाकाल बढाया गया कुल ६८ लोगो को दोषी करार दिया गया यह रिपोर्ट उस कछुए के विश्वास जैसा की आगे चलकर कछुआ पेड़ के निचे सो जायेगा और वह जीत जायेगा आयोग का तथ्य ठीक उसी कहानी का ही रूप है , लेकिन परिणाम और पृष्ठों की संख्या में आयोग जय मिल आगे है देश के बेहद संगीन मामले की जाँच पर राजनितिक आंच साफ़ दिखाती है आयोग ने तीन समूहों में दोष सिद्ध किये है पहले समूह में जिम्मेदार लोगो को शामिल किया गया है दुसरे समूह में आन्दोलन के उदार चेहरों की बताया गया है , उन्हें ही छद्म नरमपंथी कहा गया है , तीसरे दोषी वे है , जिन्होंने आन्दोलन को अंजाम तक पहुचने मदद की आयोग ने अपनी उपयोगिता सिद्ध करने की पूरी कोशिस की हैजबकि कई अवसरों पर उसकी असलियत कोरी झूटसाबित है देव्राह बाबा की संलिप्तता इसका एक प्रमाण मात्र है जिनकी स्वर्गवास बाबरी कांड के २ वर्ष पहले ही हो चुका था यदि आयोग की रिपोर्ट का अध्ययन १९९२ के चार साल पहले शुरू होता है तो निवर्तमान प्रधानमंत्री पी.वी .नरसिंह राव की सिर्फ एक दिन की अनभिज्ञता पर जोर क्यों दिया गया है ? १७ साल की असाधरण देरी के बाद रिपोर्ट के आधार पर कुछ लोगो को खिलाफ आज मुकदमा दायर भी किया जाये तो उन्हें सजा दिलाने और कितने और साल लगेगे , कोई नहीं जनता स्थिति यह है की आयोग की रिपोर्ट में दोषी पाए गए कुछ लोग परलोक सिधार गए है अधिकारी सेवानिवृत हो चुके है , कई राज्नेनाओ ने अपनी राजनितिक प्रतिबद्धता और पार्टी बदल ली है , आज यह रिपोर्ट सिर्फ टकराव की राजनितिक को जन्म देती है , जैसा की राज्य सभा में सपा के अमर सिंह और भाजपा के एस .एस अहलुवालिया के मध्य हुआ जिसको पूरा देश देख रहा था

Tuesday, January 5, 2010

स्वागतम..........

मै आशुतोष चतुर्वेदी आज से आपसे "कलम का प्रहरी" नाम के ब्लॉग से जुड़ गया हूँ..... इस पर मेरा लेखन अनवरत रूप से जारी रहेगा.... आशा है आपका सहयोग मुझको मिलता रहेगा......... आपकी प्रतिक्रियाओं का मुझको इन्तजार रहेगा............................................... सधन्यवाद ...... आपका
................ आशुतोष चतुर्वेदी......