बचपन में एक कहावत पढ़ी थी जिसमे कछुआ और खरगोश की दौड़ का जिक्र था कछुआ अपनी क्षमता को पहचानते हुए भी खरगोश के साथ दौड़ाने पर राजी हो जाता है अंततः जीत पर कछुआ अपना अधिकार भी जमा लेता है इस कहानी शिक्षा यही मिलती है की अपने पर विश्वास हो तो अपनी उपयोगिता सिद्ध की जा सकती है ६ दिसम्बर १९९२ को बाबरी बिध्वंस पर लिब्राहन योग ने अपनी रिपोर्ट में कछुआ चाल तो है साथ में विश्वास नहीं है आयोग अपनी रिपोर्ट पेश कर चुका है जैसा उसे एक दिन करना ही था पर दुर्भाग्य यह की इसमे कुल १७ साल लग गए , साथ ही करोडो रूपये का खर्चा भी हुआ इस दौरान
४८ बार आयोग का सेवाकाल बढाया गया कुल ६८ लोगो को दोषी करार दिया गया यह रिपोर्ट उस कछुए के विश्वास जैसा की आगे चलकर कछुआ पेड़ के निचे सो जायेगा और वह जीत जायेगा आयोग का तथ्य ठीक उसी कहानी का ही रूप है , लेकिन परिणाम और पृष्ठों की संख्या में आयोग जय मिल आगे है देश के बेहद संगीन मामले की जाँच पर राजनितिक आंच साफ़ दिखाती है आयोग ने तीन समूहों में दोष सिद्ध किये है पहले समूह में जिम्मेदार लोगो को शामिल किया गया है दुसरे समूह में आन्दोलन के उदार चेहरों की बताया गया है , उन्हें ही छद्म नरमपंथी कहा गया है , तीसरे दोषी वे है , जिन्होंने आन्दोलन को अंजाम तक पहुचने मदद की आयोग ने अपनी उपयोगिता सिद्ध करने की पूरी कोशिस की हैजबकि कई अवसरों पर उसकी असलियत कोरी झूटसाबित है देव्राह बाबा की संलिप्तता इसका एक प्रमाण मात्र है जिनकी स्वर्गवास बाबरी कांड के २ वर्ष पहले ही हो चुका था यदि
आयोग की रिपोर्ट का अध्ययन १९९२ के चार साल पहले शुरू होता है तो निवर्तमान प्रधानमंत्री पी.वी .नरसिंह राव की सिर्फ एक दिन की अनभिज्ञता पर जोर क्यों दिया गया है ? १७ साल की असाधरण देरी के बाद रिपोर्ट के आधार पर कुछ लोगो को खिलाफ आज मुकदमा दायर भी किया जाये तो उन्हें सजा दिलाने और कितने और साल लगेगे , कोई नहीं जनता
स्थिति यह है की आयोग की रिपोर्ट में दोषी पाए गए कुछ लोग परलोक सिधार गए है अधिकारी सेवानिवृत हो चुके है , कई राज्नेनाओ ने अपनी राजनितिक प्रतिबद्धता और पार्टी बदल ली है , आज यह रिपोर्ट सिर्फ टकराव की राजनितिक को जन्म देती है , जैसा की राज्य सभा में सपा के अमर सिंह और भाजपा के एस .एस अहलुवालिया के मध्य हुआ जिसको पूरा देश देख रहा था