Thursday, January 7, 2010

ऑस्ट्रेलिया की लापरवाही या लीपापोती

ऑस्ट्रेलिया में भारतीय छात्रो पर हमले का सिलसिला लगातार बढता ही जा रहा है परन्तु अब तक ऑस्ट्रेलिया सरकार की तरफ कोई सकारात्मक पहल देखने में नहीं आया हैपंजाब के छात्र नितिन गर्ग के बाद विदेश मंत्री एस . ऍम. कृष्णा की कड़ी आप्पति के बाद ऑस्ट्रेलिया भारत को संयम बरतने की नसीहत दे रहा हैसाथ ही उसको अपने अंदर झाकने की सलाह भी दे रहा है कि भारत्ब के बड़े महानगरो में भी विदेशी लोगो कि हत्या हो रही है इधर दिल्ली ऑस्ट्रलियाई उच्चायुक्त पीटर वर्गीश ने कहा कि अधिकतर घटनाये शहरी अपराध के मामले है हमले को शुन्य करने पर वह अपनी असमर्थता भी जताते है वर्तमान समय में ऑस्ट्रेलिया में भारत के लगभग ९० हजार भारतीय है ,छात्रो का बड़ा समूह वहा शिक्षा ग्रहण कर रहा है जिससे वहा कि सरकार को काफी मात्र में आर्थिक लाभ होता हैइसका अंदाजा शायद ऑस्ट्रेलिया सरकार को नहीं है यदि वहा भारतीयों पर हो रहे हमले कि मूल जड़ को देझा जाये तो वह नस्लीय भेदभाव है जिसको वे मानने को तैयार नहीं हैं ऐसे में सवाल यह य्थाता है कि बिना आधार के किस बुनियाद पर पुलिस या सरकार जाँच का झूटी अस्वासन दे रही है अभी तक कोई गिफ्तारी नहीं हुई है औए हमले निरंतर जारी है विद्यार्थियों के जीवन के मह्त्व्व को दोनों देशो कि सरकारों अब समझाना ही होगा ऑस्ट्रेलिया सरकार से ऐसे समय में उम्मीद करना तो बेईमानी ही दीखता है भारतीय सन्दर्भ में बात करे तो अब सरकार को समझाना होगा कि आखिर क्यों छात्र देश छोड़कर बाहर जाकर शिक्षा ग्रहण कर रहे हैविदेशी शिक्षा का ऐसा परिणाम देखते हुए भारत सरकार को अपनी घरेलु शिक्षा निति कि सूक्ष्मता कि पड़ताल करने का समय आ गया है विदेश मंत्री एस. ऍम. कृष्णा को सिर्फ खीजने से कुछ नहीं होगाजैसा कि वो अपने वक्तब्य में कहते है कि छोटे -छोटे कोर्स के लिए छात्र विदेश जाते ही क्यों है?इसका सार्थक उत्तर यदि सरकार जानना चाहती है तो मात्र उसको अपने अन्दर झाकने कि जरुरत है तस्वीर अपने आप स्पस्ट हो जाएगी जिस देश में प्राथमिक शिक्षा देने के के लिए भोजन जो सहारा बनाया जाता है वहा उच्च शिक्षा का स्तर कितना प्रभ्वी है इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है

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