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लाल की मौत पर अधिकारों की हत्या
देश के दुसरे प्रधानमंत्री स्व० श्री लाल बहादुर शाश्त्री की संवेदनशील मौत का सच आज ४४ वर्षो बाद भी आम जनता के सामने नहीं आ पाया है १९६५ के भारत -पाकिस्तान युद्ध के बाद जनवरी १९६६ में लाल बहादुर शाश्त्री और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ताशकंद में शांति समझौता के लिए उपस्थित हुए इस समझाते में शाश्त्री जी ने हाजीपीर को पाक को दे दिया जिस कारण वे अत्यधिक मानसिक उहापोह की स्थिति में थे जिस पर आज भी संसय बरकरार है रात्रि के भोजन के बाद उनको ताशकंद के एक होटल में रुकना था ,जबकि उनको शहर से दूर एक गेस्ट हॉउस में ठहराया गया उस जगह का निरिक्षण एक भारतीय आला अधिकारी डीसी दत्त ने किया था मध्य रात्रि को शाश्त्री जी की तबियत अचानक ख़राब हो गयी, परन्तु व्यवस्था ऐसी थी की वहा पर सुविधा नगण्य थी भारत के प्रधान मंत्री के साथ इतनी घथिया बदइन्तजामी थी कि वह उनकी असामयिक मौत का कारण बन गयी उसी समय से मौत को छिपाने की पूरी कोशिश शुरू हो गयी मृत्यु का कारण दिल का दौरा बताया गया जबकि शास्त्री जी का पूरा शारीर नीला पड़ गया था, इसके बावजूद पोस्टमार्टम नहीं किया गया कार्यवाही के नाम पर उनका खाना पकाने वाले रशियन कुक से पूछताछ कर उसे ५ घंटा बाद छोड़ दिया गया मृत्यु के कारणों की पुष्टि का ९ डाक्टरों वाला प्रमाण पत्र आज भी भारत सरकार के पास नहीं है इस सच को जानने का प्रयास जनता दल की सरकार ने जरुर किया था, कोर्ट में याचिका दायर की गयी सुनवाई की तिथि निर्धारित की गयी, जिसमे शास्त्री जी के पर्सनल डाक्टर आर.ऍम चुक तथा रामनाथ को कोर्ट में गवाही के लिए पेश होने के लिए कहा गया, जबकि कोर्ट आने से पहले ही डाक्टर चुक की एक कार दुर्घटना में पुरे परिवार के साथ मृत्यु हो गयी, रामनाथ को एक सरकारी बस ने कुचल दिया जिसमे उनके दोनों पैर कट गए, साथ ही उनका मानसिक संतुलन बिगड़ गया अब सवाल यह उठता है की आखिर गवाही की ठीक एक दिन पहले ही दोनों गवाहों की मौत कैसे हो गयी ?इसका अंदाजा तो शायद एक साधारण आदमी भी लगा सकता है शास्त्री जी के निवर्तमान प्रेस सलाहकार कुलदीप नैय्यर भी इसको षड़यंत्र मानते है ,जो उस समय ताशकंद में मौजूद रहे कुलदीप को ताशकंद में भारतीय राजदूत ने दो बार फोन करके शास्त्री जी की स्वाभाविक मौत स्वीकार करने को कहा था सब कुछ छिपाने की योजना और साजिश व्यापक स्तर पर चल रही थी सूचना के अधिकार के तहत जब अनुज धर ने याचिका दायर की तो प्रधान मंत्री कार्यालय ने सूचना देने से मना कर दिया दुसरे देश से रिश्ता बिगड़ जाने का हवाला दिया गया भारत का वह लाल जिसने देश की वाह्य तथा आतंरिक रक्षा करने वाले जवानो और किसानो को एक सूत्र में पिरोने का प्रयास किया, उसके साथ अपनी सरकारे ऐसा बर्ताव करेगी शायद किसी ने सोचा नहीं होगा विदेश से रिश्ते बिगड़ने का हवाला देने वालो की इससे बड़ी विफलता क्या हो सकती है कि वे इतने संवेदनशील और गंभीर घटनाक्रम पर बुरी तरह असफल सिद्ध हुए विदेश की चिंता जताने वालो को आज उनकी जरा भी चिंता नहीं है जिन्होंने उनको इस काबिल बनाया है
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